लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने अगले वर्ष की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने के बाद पार्कों एवं स्मारकों का निर्माण न कराकर उत्घ्तर प्रदेश के विकास करने पर जोर दिया और दावा किया कि वह उत्घ्तर प्रदेश की तस्घ्वीर बदल देंगी। यहां पार्टी मुख्यालय में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने 2007 के शानदार परिणामों को दोहराने के लिए दलितों और ब्राह्मणों के बीच एक मजबूत एकता बनाने का आह्वान किया।
मायावती ने करीब डेढ़ माह से ब्राह्मणों को साधने के लिए पार्टी द्वारा चलाये जा रहे प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के पहले चरण के समापन पर लखनऊ बसपा मुख्यालय में राज्य के सभी जिलों से आये लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि 2022 में उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने पर वह विकास और कानून का राज स्थापित कर उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलने पर ध्यान देंगी। मायावती ने कहा, ‘‘ समाज में समानता के लिए काम करने वाले महापुरुषों के सम्मान में स्मारकों और पार्कों की स्थापना से संबंधित सभी कार्य मैं पहले ही पूरा कर चुकी हूं।’’ अपनी पिछली सरकारों के दौरान कई पार्कों, स्मारकों की स्थापना के लिए निशाने पर रहीं बसपा अध्यक्ष ने स्पष्ट किया, हमारे संतों के सम्मान के लिए मुझे जो भी काम करना था, वह सब ठोक के किया गया है।
नोएडा और लखनऊ में उनके सम्मान में अब और कुछ करने की जरूरत नहीं है।’’ उन्घ्होंने कहा कि अब जब उत्तर प्रदेश में पांचवीं बार बसपा की सरकार बनेगी तो तब मेरी पूरी ताकत अब स्घ्मारक, संग्रहालय, पार्क और मूर्ति आदि बनाने में नहीं लगेगी बल्कि मेरी पूरी ताकत राज्य की जो मौजूदा तस्घ्वीर है उसको बदलने में ही लगेगी ताकि पूरा देश यह कहे, पूरी दुनिया यह कहे कि शासन हो तो बसपा के शासन की तरह होना चाहिए। बच्घ्चा-बच्घ्चा यह कहे कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने उत्घ्तर प्रदेश की तस्घ्वीर बदल दी। उन्घ्होंने यह भी कहा, मैं सभी धर्मों के लोगों को यह कहना चाहती हूं कि अगर वे लोग चाहते हैं कि उनके धर्म के भी महान संतों-गुरुओं आदि को भी पूरा-पूरा आदर सम्घ्मान मिले तो उनकी धार्मिक भावनाओं को पूरा सम्घ्मान जरूर दिया जाएगा।
बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की उपस्थिति में बसपा प्रमुख ने यह साफ किया कि जिन संतों और महापुरुषों के नाम पर उन्होंने अपनी पिछली सरकारों के दौरान पार्क और स्मारक स्थापित किए थे, वे किसी जाति विशेष धर्म के खिलाफ नहीं थे, बल्कि असमानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ थे। बसपा ने 2007 में 403 सदस्यीय विधानसभा में 206 सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बनाई थी और तब जीत का श्रेय मुख्य रूप से दलितों-ब्राह्मणों की एकता बनाकर उनकी सोशल इंजीनियरिंग को दिया गया था। बसपा प्रमुख ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) पर केवल बड़े-बड़े दावे करने और जमीनी स्तर पर कुछ नहीं करने का आरोप लगाते हुए बसपा को फघ्रि से सत्घ्ता में लाने के लिए दलित-ब्राह्मण एकता का आह्वान किया।उन्घ्होंने वादा किया कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो दलितों और ब्राह्मणों के खिलाफ अत्याचार के मामलों की जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि भाजपा और सपा दोनों ने दलितों और ब्राह्मणों के वोट के लिए खाली बातचीत की लेकिन सत्ता में रहते हुए उनके हितों की रक्षा नहीं की।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि उनकी सरकार ने ब्राह्मण समाज की सुरक्षा और विकास के लिए ऐतिहासिक काम किया और किसी भी तरह के शोषण की अनुमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि उन्हें टिकट आवंटन और मंत्री पदों पर भी उचित प्रतिनिधित्व दिया गया था। बसपा प्रमुख ने कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध का समर्थन किया और घोषणा की कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो राज्य में तीनों विवादास्पद कानूनों को लागू नहीं किया जाएगा। राज्य की कानून-व्घ्यवस्घ्था को लेकर भाजपा एवं सपा पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा, हमारी बहनें वर्तमान भाजपा सरकार और पिछली सपा सरकार दोनों में सूर्यास्त के बाद घर से बाहर नहीं जा सकतीं, भले ही वे कोई दावा करें या इसे साबित करने के लिए कोई हथकंडा अपनाएं। हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के एक ही पूर्वज होने पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान का जिक्र करते हुए बसपा अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि आरएसएस, भाजपा और सरकार ने मुसलमानों के प्रति सौतेला रवैया क्यों अपनाया है। उन्होंने सपा और कांग्रेस को मुसलमानों के मामले में किसी भी तरह से कम नहीं बताते हुए उनसे अपील की कि वे पश्चिमी उप्र के मेरठ और मुजफ्फरनगर दंगों के मामलों को न भूलें।