‘वोकल फॉर लोकल’ का असर, बाजार से चीनी राखियां नदारद, भारतीय राखियों की भरमार

Prashan Paheli

नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की त्योहारों पर ‘वोकल फॉर लॉकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की अपील का असर धरातल पर नजर आ रहा है। उत्तर भारत के सबसे बड़े थोक बाजार, सदर बाजार में इस बार रक्षाबंधन के त्यौहार पर चीन निर्मित राखियां नदारद हैं और सिर्फ भारतीय राखियों की ही भरमार है।

इससे दुकानदारों में भी खासा उत्साह है और उन्हें इस बार अच्छा कारोबार होने की उम्मीद है। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि ग्राहक भारतीय राखियों की ही ज्यादा मांग कर रहे हैं। वे चीन की राखी की मांग में कमी का एक प्रमुख कारण उसकी महंगी कीमत और खराब गुणवत्ता को भी बता रहे हैं।चीनी राखी की शुरूआती कीमत ही 50 रुपये है और यह टूटती भी जल्दी है।

बाजार में 80 फीसदी भारतीय राखियां ही मिल रही हैं और राखियों के बाजार में चीन की हिस्सेदारी मुश्किल से 20 फीसदी तक ही रह गई है । चीन की राखियों की मांग बीते तीन-चार साल के दौरान कम हुई है। इससे पहले चीन से राखियां खूब आती थीं।

भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस साल रक्षाबंधन 30 और 31 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा।

रक्षाबंधन के दिन बहन, भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उसके सुखी जीवन की कामना करती हैं। वहीं भाई, बहन की रक्षा का वचन देता है। राखी व्यापारी केवल सिंह ने बताया कि आजकल धागे वाली और सूती राखियों की मांग है और बाजार में सिर्फ भारतीय राखियां ही उपलब्ध हैं। बाजार में इस बार धागे वाली राखी, रेश्म की राखी, कलावा वाली रखी, रूद्राक्ष की राखी, मोर पंखी राखियां हैं। इसके अलावा भैया-भाभी की ‘लुम्बे’ वाली राखियों भी बाजार में मिल रही हैं।

बच्चों के लिए कार्टून किरदारों की राखियां उपलब्ध हैं। उनमें ‘मोटू पतलू’ “छोटा भीम’, ‘शिनचेन’ और ‘डोरी मोन’ आदि राखियां हैं। प्रधानमंत्री ने बीते रविवार को भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में रक्षाबंधन की अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए दोहराया था, “पर्व-उल्लास के समय हमें वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को भी याद रखना है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ का अभियान हर देशवासी का अपना अभियान है।”

 

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