नयी दिल्ली। संसद के मानसून सत्र में महंगाई, कृषि कानून, पेगासस जासूसी समेत कई मुद्दों पर कांग्रेस के साथ पूरा विपक्षी दल एकजुट दिखाई दिया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आने वाले चुनावों में भी पूरा विपक्ष एकजुट दिखाई देगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जहां सभी को एक छत के नीचे लाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भी सत्ता के शिखर पर पहुंचने का ख्वाब देख रही हैं।
मौजूदा समय में ममता बनर्जी न तो विधायक हैं और न ही सांसद फिर भी तृणमूल कांग्रेस की संसदीय दलों की नेता हैं। जिसका मतलब साफ है कि केंद्र की मोदी सरकार को ममता बनर्जी सीधी चुनौती देने वाली हैं और वह पांच दिवसीय दिल्ली यात्रा के दौरान भी एक्टिव दिखाई दीं। उन्होंने तमाम विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से भी मिलीं।
कांग्रेस के नेतृत्व में सभी विपक्षी दल किसानों की संसद में शामिल होने वाले थे। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने शुक्रवार को पहले ही किसान संसद में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के प्रति एकजुटता जाहिर की। जबकि बाद में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए।
बीते दिनों कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने ऑफिस में सभी विपक्षी दलों के साथ बैठक की थी ताकि आगे की रणनीति पर चर्चा की जा सके। इस बैठक में तृणमूल के साजेदा खातून और नदीमुल हक शामिल हुए थे। राहुल गांधी के ब्रेकफॉस्ट पर चर्चा में भी तृणमूल के सांसद अच्छी संख्या में मौजूद रहे लेकिन फ्लोर के नेता नदारद थे।
अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस के सूत्र ने बताया कि हम संसद में एक मजबूत समूह हैं, इसलिए हमने दूसरों के साथ काम करते हुए मुद्दों को अपने तरीके से उठाने का फैसला किया है। पार्टी के सभी नेताओं की एक बैठक होनी चाहिए, जिसके लिए ममता बनर्जी दिल्ली में थीं।
दरअसल, तृणमूल कांग्रेस ने कई मौकों पर यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके पास नेतृत्व भूमिका के लिए नेता मौजूद है। ऐसे में वह तमाम विपक्षी दलों को एकजुट कर नेतृत्व परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं। हालांकि बीते कुछ दिनों से राहुल गांधी भी संसद के कामकाज को लेकर काफी एक्टिव हुए हैं।