विपक्षी इंडिया गठबंधन की रामलीला मैदान में रैली की सफलता

Prashan Paheli

नेताओं के जुटान के नजरिए से देखा जाए तो विपक्षी इंडिया गठबंधन की दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली एक सफल रैली थी। इसने अपने अंतर्विरोधों के साथ और उसके बावजूद भी एकजुटता जाहिर की है, जिससे यह संदेश गया है कि इंडिया में एनडीए को चुनौती देने का दम-खम है। भ्रष्टाचार के कथित मामले में जांच एजेंसियों की ‘एकपक्षीय’ सक्रियता से भी उनके नेताओं के चुनावी जोश में कोई फर्क नहीं पड़ा है।
इंडिया के 27-28 दलों की मंच पर कतारबद्ध मौजूदगी इसे प्रामाणिक बनाती है। तभी तो रैली में रखे कांग्रेस के पांच न्यायों में से एक ‘चुनाव के दौरान विपक्षी राजनीतिक दलों का आर्थिक रूप से गला घोंटने की जबरन कार्रवाई को तुरंत बंद करने की आयोग से मांग’ पर कदम उठाया गया है।

आयकर विभाग ने जुलाई तक उसके खाते पर किसी कार्रवाई से इनकार कर दिया है। यह त्वरित सफलता है। इसके अलावा, चुनाव आयोग से आम चुनावों में समान अवसर मुहैया कराने, चुनाव में हेराफेरी करने के उद्देश्य से विपक्षी दलों के खिलाफ जांच एजेंसियों की कार्रवाइयों पर रोक लगवाने, चुनावी चंदे का उपयोग कर भाजपा द्वारा बदले की भावना, जबरन वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी का गठन करने तथा सरकार से हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल की तुरंत रिहाई की मांग उन पांच न्यायों में शामिल है। ये बिंदु विपक्ष के चुनाव प्रचार एवं मुद्दे की एक व्यापक आम समझ जाहिर करते हैं।

इन्हीं मुद्दों पर विपक्ष चुनाव में सरकार को घेरेगा। इनके बावजूद, दलगत सिद्धांतों एवं इसी आधार पर सीट शेयरिंग के साथ चुनिंदा नेताओं के व्यक्तित्व को लेकर एक समझ में आ सकने वाली दुविधा से यह रैली अछूती नहीं थी। इसकी आयोजक-संयोजक कही जाने वाली आप इसको अपने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर फोकस करना चाहती थी, जो कांग्रेस के कड़े विरोध के चलते संभव नहीं हुआ। पर आप को इससे कोई फायदा नहीं हुआ, ऐसा भी नहीं है।

इस रैली से सुनीता केजरीवाल की सियासत में एक ग्रैंड इंट्री हुई है, जिन्होंने गारंटी के छह मुद्दे रखने के साथ अपने पति को इस्तीफा नहीं दिलाने पर जनस्वीकृति भी ली है। अगर ‘संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त होने’ या नैतिकता पालन के नाम पर अरविंद केजरीवाल हटे या हटाए गए तो उनकी पत्नी उनकी जगह ले लेंगी। हालांकि इंडिया की इस रैली की उसकी एकजुटता से शासन के वैकल्पिक एजेंडे की उम्मीद थी, जो पूरी नहीं हुई।

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