फूलदेई पर्व पर कक्षा 8वीं तक के छात्र- छात्राओं को मिले अवकाश

Prashan Paheli

उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई लोक परम्पराओं का वाहक

देहरादून। फूलदेई पर्व पर कक्षा आठ तक वे स्टूडेंट्स के लिए अवकाश घोषित करने की मांग की। मुख्यमंत्री धामी ने अवकाश सम्बन्धी मांग पर विचार का भरोसा दिया। फूलदेई संरक्षण मुहिम के संस्थापक शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि मुख्यमंत्री धामी ने इस मांग को गम्भीरता से लिया है। मैठाणी कहा कि जब तक बच्चों को इस पर्व पर अवकाश नहीं मिलेगा तो तब तक फूलदेई फूल फूलमाई पर्व की विशिष्टता पूर्ण नहीं हो सकती है। क्योंकि फूलदेई पर्व पर बच्चे सुबह से टोली बनाकर भिन्न-भिन्न घरों में जाकर पुष्प वर्षा करते हैं। मैठाणी ने कहा कि वर्ष 2004 में उन्होने गोपेश्वर से खूबसूरत पर्व फूलदेई फूल फूल माई को पुर्नजीवित करने का जो अभियान आरम्भ किया था।

मैठाणी ने कहा कि 1990 के दशक में टेलीविजन और फोन की क्रांति से पहाड़ों के कई रीति रिवाज समाप्त हुए या कुछ का स्वरुप बदलता चला गया। इसी क्रम में खूबसूरत पर्व रुद्रप्रयाग की केदारघाटी के अलावा कमोवेश पूरे पर्वतांचाल से समाप्त ही हो गया था। उत्तराखंड बनने के बाद पहाड़ों से पलायन की रफ़्तार भी तेज हुई तो लोक परम्पराओं को भी लोग भूलने लगे थे। तब उन्होने वर्ष 2004 से इसे फैलाने का काम शुरू किया। फूलदेई संरक्षण अभियान के संस्थापक मैठाणी ने सीमांत गोपेश्वर व आसपास के दर्जनभर गांवों से फूलदेई लोकपर्व को पुनर्जीवित करने का अभियान वर्ष 2004 से शुरू किया। और बीते साल मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने इस पर्व को बाल पर्व के रूप में मनाने का एलान किया।

राजभवन और मुख्यमंत्री देहरी पर फूलदेई पर्व मनाने की शुरुआत

करीब एक दशक तक मैठाणी नें पहाड़ों के स्कूलों में जाकर फूलदेई का खूब प्रचार प्रसार किया । और नई पीढ़ी को इस पर्व को उत्साह व उमंग के साथ मनाने के लिए तैयार किया। 2012 से उन्होने राजधानी देहरादून के प्रमुख अधिकारियों की देहरियों के अलावा कुछ मोहल्लों में फूलदेई फूल फूलमाई पर्व को मनाने का अभियान शुरू किया।

वर्ष 2013 से राजभवन एवं मुख्यमंत्री आवास की देहरियों पर विभिन्न स्कूलों के बच्चों को लेजाकर पुष्प वर्षा करना शुरू किया । मुख्यमंत्री धामी ने गत वर्ष गैरसैण विधानसभा में एलान कर दिया कि फूलदेई पर्व अब राज्य का बालपर्व के रूप में मनाया जाएगा।

फूलदेई पर्व की मान्यता

मान्यता है कि इस पर्व पर बच्चों को बाल भगवान के रूप में देखा जाता है जो घर-घर जाकर दर्शन देते हैं। बच्चों द्वारा घरों की देहारियों पर की जाने वाली पुष्प वर्षा को धन धान्य एवं सुख समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। अब यह पर्व पहाड़ हो या मैदान आम से लेकर ख़ास तक काफी लोकप्रिय हो गया है।

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