हरिद्वार। हरिद्वार कुंभ के इतिहास में इस बार किन्नर संत नया इतिहास रचने जा रहे हैं। वह 2021 के कुंभ में संतों के साथ शाही स्नान करेंगे। हरिद्वार कुंभ में ऐसा पहली बार होगा जब किन्नर संत अखाड़े के रुप में कुंभ स्नान करेंगे। हरिद्वार कुंभ, अर्द्धकुंभों का इतिहास सैंकड़ों साल पुराना है। इनमें संतों की स्नान परंपरा भी कुंभ, अर्द्धकुंभों जितनी ही पुरानी है। लेकिन कभी महिला या किन्नरों ने संतों के साथ अखाड़ों के रुप में कुंभ स्नान किया हो इसका वृत्तांत नहीं मिलता। अलबत्ता महिला संतों की संत समाज में मान्यता व शंकराचार्य पद के समानांतर पार्वताचार्य पद के सृजन के विवाद सामने आते रहे हैं। लेकिन संत समाज व संतों के प्रतिनिधि अखाड़ों ने कभी भी महिला संतों को सामुदायिक व सांगठनिक रुप से मान्यता नहीं प्रदान की। बल्कि इस पर विवाद होते रहे।
इस बार ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि नया नया अस्तित्व में आया किन्नर अखाड़ा हरिद्वार में कुंभ परंपरा के स्नान करने जा रहा है। यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो कुंभ 2021 में किन्नर अखाड़े के संत शाही स्नानों में न केवल अखाड़ों के आगे कुंभ पताका लेकर चलते नजर आएंगे बल्कि अखाड़ा संतों के साथ गंगा में डुबकियां लगाते भी नजर आएंगे। इसके लिए संतों के प्रतिष्ठित जूना अखाड़े ने संत समाज में किन्नर अखाड़े की पैरवी भी शुरू कर दी है। महिला संतों को लेकर संतों का पहला विवाद 2005 में तब सामने आया जब यूरोप की महिला संत ज्योतिषानंद ने संतों के सर्वोच्च शंकराचार्य पद के सापेक्ष पार्वताचार्य पद का गठन कर स्वयं को प्रथम पार्वताचार्य घोषित कर कनखल में धूनी जमा ली। संतों ने इसे न केवल शंकराचार्य परंपरा का अपमान बताया बल्कि कथित पार्वताचार्य के खिलाफ एकजुट होकर मोर्चा खोल दिया। आखिर में संतों के आक्रोश के बाद स्वयंभू पार्वताचार्य को बोरिया बिस्तर समेटकर वापस विदेश भागना पड़ा। हरिद्वार की ही महिला संत साध्वी चंद्रकांता ने भी महिला संतों को एकजुट कर उसे माईवाड़े के रुप में संतों से मान्यता दिलाने के प्रयास किये। लेकिन अखाड़ा संतों ने उसे भी खारिज कर दिया। साध्वी प्राची भी कई वर्ष से महिला संतों के परी अखाड़े को स्वीकृति दिलाने के लिए अखाड़ा संतों की परिक्रमा कर रही हैं। उन्हें भी सफलता मिलती नही दिख रही। लेकिन किन्नर संतो के प्रति अखाड़ा संतों के नरम रुख से अब कुंभ स्नान में संतों के साथ किन्नर संत जरूर नजर आएंगे।