मथुरा। उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में होली का उत्साह साफ नजर आ रहा है। बसंत पंचमी पर मंदिरों में एवं होलिका दहन स्थलों पर होली का ढांडा गाड़े जाने के बाद से ही भगवान कृष्ण की नगरी में 40 दिनों तक चलने वाले रंगोत्सव की धूम शुरू हो गई थी। अब 10 मार्च को बरसाना के लाड़िली जी मंदिर में ‘लड्डू होली’ खेले जाने के साथ ही होली का आनंद चरम पर पहुंचता जाएगा। श्रीजी मंदिर के सेवायत किशोरी गोस्वामी ने कहा ‘‘कान्हा की नगरी में रंग खेलने का आनंद उन लोगों से ज्यादा कौन जानता होगा जो ‘लट्ठ की मार’ खाकर भी खुद को धन्य मानते हैं। इस बार फागुन शुक्ल नवमी व दशमी को क्रमशरू बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाएगी।’’ उन्होंने बताया कि इसके बाद रंगभरनी एकादशी पर 12 मार्च को मथुरा में ठाकुर द्वारिकाधीश एवं वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में श्रद्धालु अपने आराध्य के साथ होली खेलेंगे।
इस दिन मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में लीलामंच पर ब्रज की कमोबेश सभी प्रकार की होलियों का मंचन होगा। कहा जाता है कि जब बरसाना से एक सखी सुबह राधारानी की ओर से रंग और मिठाई लेकर नन्दगांव के हुरियारों (होली खेलने वालों) को होली का आमंत्रण देने जाती है तो सायंकाल वहां से एक पण्डा कृष्ण के प्रतिनिधि के रूप में होली का न्यौता देने बरसाना पहुंचता है। बरसाना के गोस्वामी उसकाआदर-सत्कार करते हैं। सेवायत गोस्वामी ने बताया कि आवभगत के लिए पण्डा को लड्डू खिलाने की होड़ मच जाती है और उस पर एक प्रकार से लड्डुओं की बरसात होती है। इन्हीं लड्डुओं को प्रसाद के रूप में दिया जाता है और इसे ‘लड्डू होली’ या ‘लड्डू लीला’ कहा जाता है। फाल्गुन शुक्ल नवमी के दिन बरसाना में लट्ठमार होली होती है। सेवायत किशोरी गोस्वामी बताते हैं कि दिल्ली से टेसू के 10 क्विंटल फूल मंगाए गए हैं। उन्होंने बताया कि टेसू के फूलों से तैयार रंग को लाड़ली जी मंदिर में ऊपर की मंजिलों से श्रद्धालुओं एवं नन्दगांव के हुरियारों पर डाला जाता है।
इसके बाद 14 मार्च को श्रद्धालु मथुरा में ठाकुर द्वारिकाधीश एवं वृन्दावन में ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में रंगों की होली खेलेंगे। 16 मार्च को गोकुल की छड़ीमार होली होगी। गोपियां बालकृष्ण के साथ होली खेलने के लिए, छोटी-पतली छड़ियां ले कर निकलेंगी। मान्यता है कि यदि बड़ी लाठी से होली खेली जाएगी, तो कृष्ण को चोट पहुंच सकती है इसलिए यहां छड़ियों से ही होली खेली जाती है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के अवसर पर कोसीकलां के निकट स्थित फालैन गांव में एक पण्डा होली की धधकती हुई ज्वाला में से गुजरता है। अगले दिन ब्रजवासी होली खेलते हैं। इसी के साथ रंगों से खेली जाने वाली होली की परम्परा का एक पक्ष यहां सम्पूर्ण हो जाता है।