देहरादून। ईशा फाउंडेशन के मीडिया समन्वयक संगीता थपलियाल ने कहा कि फाउंडेशन के संस्थापक सदगुरु जग्गवासुदेव 65 साल का बूढा व्यक्ति एक महीने से बर्फीले ठंड और बारिश मे लगातार बाईक से यात्रा कर रहे है और विभिन्न देशों में सेमिनार मे भाग लेकर देश दुनिया को जागरूक करने के लिये प्रयासरत हैं। इस उम्र मे शरीर को इतना कष्ट देने के पीछे पैसा और प्रसिद्धी तो नही ही होगी। यकीनन ये धरती मां के प्रति कर्तव्य परायणता ही होगी।
उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में जहां 60 फीसदी आबादी आज भी गांवों में रहती है, जिसकी अर्थव्यवस्था आज भी खेती पर आधारित है उस देश की मुख्य संपत्ति पानी और मिट्टी है। उन्होंने बताया कि सदगुरु जग्गी वासुदेव कहते है कि अगर हम इस बात को भूल गए तो हमें ये सबक याद दिलाया जाएगा। उन्होंने बताया कि सदगुरु बताते है कि लोग मुझसे पूछते हैं कि आपने कावेरी नदी को लेकर अभियान क्यों शुरू किया है इस सवाल का जवाब देते हुए पिछले 20 सालों 3 लाख किसान खुदकुशी कर चुके हैं। कावेरी और आस-पास की भूमि का जिक्रकरते हुए उन्होंने कहा कि ये दुनिया की सबसे उपजाऊ जमीन हुआ करती थी। मनुष्य अनादिकाल से जानता है। धरती, जिस पर वह हल चलाता है, खेत जिसमें वह फसलें उगाता है और घर जिसमें वह रहता है, ये सभी हमें मिट्टी की याद दिलाते हैं। किंतु मिट्टी के संबंध में हमारा ज्ञान प्रायरू नहीं के बराबर है। यह सभी जानते हैं कि अनाज और फल मिट्टी में उपजाते हैं और यह उपज खाद एवं उर्वरकों के उपयोग से बढ़ाई जा सकती है, लेकिन मिट्टी के अन्य विशेषताओं के बारे में, जिनसे हम सड़क, भवन, धावनपथ तथा बंधों का निर्माण करते हैं, हमारा ज्ञान बहुत कम है। थपलियाल ने कहा कि मिट्टी के व्यवहार को भली प्रकार से समझने के लिये मिट्टी के रासायनिक और भौतिक संघटन का ज्ञान आवश्यक है।