न्यायमूर्ति गोगोई, जिन्हें नौ नवंबर, 2019 को राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद का पटाक्षेप करने का श्रेय दिया जाता है, आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने सर्वसम्मति से फैसला सुनाने के बाद क्या किया।
नयी दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने कहा है कि यदि पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार पर की जाती है तो उच्चतम न्यायालय एक या दो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से भर जाएगा।
न्यायमूर्ति गोगोई, जो एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर से कनिष्ठ थे, अपनी आत्मकथा ‘जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है कि उन्होंने एक कनिष्ठ के रूप में न्यायमूर्ति लोकुर के साथ शीर्ष अदालत में एक पीठ की अध्यक्षता की।
उन्होंने लिखा, ‘‘यह थोड़ा आश्चर्यजनक लग सकता है कि मैं न्यायमूर्ति लोकुर के समक्ष एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनसे कनिष्ठ होने के बावजूद उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बन गया। लेकिन इस तरह के घटनाक्रम निश्चित रूप से होते हैं। एक संघीय न्यायालय होने के नाते, उपयुक्तता के अधीन सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिनिधित्व सभी राज्यों को दिया जाना है।’’ पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ यदि उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति विशुद्ध रूप से अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार पर की जानी है, तो उच्चतम न्यायालय एक या दो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से भरा जा सकता है।’’
न्यायमूर्ति गोगोई की आत्मकथा का विमोचन उनके उत्तराधिकारी और पूर्व प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने बुधवार को यहां एक समारोह में किया था। इसमें कॉलेजियम से संबंधित विभिन्न मुद्दों और फैसलों का जिक्र है। न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी आत्मकथा में कहा है कि उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप कुछ खास अज्ञात वर्गो द्वारा सीजेआई के कामकाज को ‘‘खतरे में डालने’’ का प्रयास था और इसकी उच्चतम न्यायालय में सुनवाई बहुत संक्षिप्त थी तथा असल में ‘‘कोई सुनवाई नहीं हुई’’। बीस अप्रैल, 2019 को‘‘इन रेः मैटर ऑफ ग्रेट पब्लिक इम्पोर्टेंस टचिंग ऑन द इंडिपेंडेंस ऑफ द ज्यूडिशियरी’’ नामक एक स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई के लिए गठित एक विशेष पीठ का हिस्सा होने के लिए पूर्व सीजेआई की आलोचना की गई थी।
न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी आत्मकथा के विमोचन के मौके पर बुधवार को कहा कि उन्हें इस मामले की सुनवाई के लिए पीठ का हिस्सा नहीं बनना चाहिए था। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी गलतियां करते हैं’’ और इसे स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘आखिरकार, मुझे उस पीठ में न्यायाधीश नहीं होना चाहिए था (जिसने उनके खिलाफ कथित यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई की थी)। बार और पीठ में मेरी 45 साल की मेहनत खराब हो रही थी। मैं पीठ का हिस्सा न होता तो शायद अच्छा होता। हम सभी गलतियां करते हैं। इसे स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है।’’