दोनों पार्टियों का राजनीतिक समीकरण को बदल
देहरादून: प्रदेश में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए नेताओं पर समस-समय पर सियासत होती रही है। कभी पार्टी के नेता ही बयानबाजी करते हैं तो कभी कांग्रेस के नेता उन पर हमला कर सरकार को घेरने की कोशिश करते रहते हैं।
उत्तराखंड में साल 2016 भाजपा और कांग्रेस के लिए दलबदल से जुड़े बागियों को लेकर खास रहा था। विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस से भाजपा में आए बागियों के चलते राजनीतिक गणित पूरी तरह से पलटता हुआ दिखाई दिया
। ऐसे में अब भाजपा में मौजूद इन बागियों में से हरक सिंह रावत के बगावत शुरू हो गई है। 2021 में राजनीतिक समीकरण क्या होंगे इस पर नया समीकरण पैदा हो गया है।
उत्तराखंड में साल 2017 का चुनाव मोदी लहर के चलते 57 सीट जीतकर भाजपा के नाम रहा। लेकिन प्रदेश में यह चुनाव काफी हद तक दलबदल के बाद बदले हुए समीकरणों पर भी निर्भर रहा।
राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री समेत प्रदेश के कैबिनेट मंत्री तक ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुए। लेकिन अब 5 साल बाद यानी 2022 के चुनाव में भी इन्हीं बागियों पर कांग्रेस और भाजपा जुबानी बयानबाजी में जुटी हुई है।
राज्य में विधानसभा चुनाव 2022 के लिए चुनावी वर्ष शुरू हो चुका है और इस चुनावी वर्ष में बागियों पर हो रही चर्चा ने कांग्रेस और भाजपा के राजनीतिक समीकरण को बदल कर रख दिया। लिहाजा कांग्रेस भाजपा पर आरोप लगा रही है कि बागियों ने साल 2016 में गलत चुनाव किया और बागी माफी मांगे तो वापसी हो सकती है।
राज्य में बागियों को लेकर चर्चा तेज है। दलबदल पर भी आशंकाएं जताई जा रही है। लेकिन भाजपा को लेकर सरकार में मंत्री और कांग्रेस से बागी हुए हरक सिंह रावत जिस तरह से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ बगावती सुर अपना रहे हैं उससे लगता है कि आने वाले चुनाव भी बागियों पर ही फोकस रहेगा।
हालांकि भाजपा साफ तौर पर यह मानती है कि पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक है और कांग्रेस से बागी हुए भाजपा नेता केवल भाजपा के भ्रष्टाचारी चेहरे को लेकर ही पार्टी को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। ऐसे में उनका फिर एक बार कांग्रेस में जाना नामुमकिन है