पर्वतीय क्षेत्रो में स्वास्थ्य विभाग की कारगुजारी का काला चिट्टा, टूटे हाथ पर गत्ता बांध कोटद्वार भेजी किशोरी

Prashan Paheli

पौड़ी। उत्तराखण्ड मंे स्वास्थ्य विभाग के कारनामों की कलई खुलकर सामने आ गयी है। रिखणीखाल के नैनीडांडा ब्लाक के अंतर्गत ग्रामसभा डांडातोली के ग्राम पोखार निवासी एक किशोरी के हाथ में बंधे गत्ते की सपोर्ट से भेजी गयी। भले ही सरकार लाख दावे करें किन्तु प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य सेवाएं दुरूस्त नही है। जिसके चलते हर साल सैकड़ों लोग असमय काल का ग्रास बन रहे है। सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं तो मुहैया करवा दी,लेकिन इन सुविधाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए संबंधित जानकारों की तैनाती करना भूल गई। पोखार निवासी इस किशोरी के हाथ की हड्डी टूट गई थी व नजदीकी चिकित्सालय में एक्स-रे टैक्नीशियन न होने के कारण किशोरी के हाथ पर गत्ता बांध उसे कोटद्वार रेफर करना चिकित्सक की मजबूरी बन गई।प्रखंड रिखणीखाल के अंतर्गत करीब 80 ग्रामसभाओं के साथ ही इस ब्लाक से सटे नैनीडांडा ब्लाक के कई गांव को रिखणीखाल के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से ही स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन इस केंद्र में सुविधाओं की बात करें तो चिकित्सालय स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहा है। कुछ माह पूर्व शासन ने चिकित्सालय में एक्स-रे मशीन तो रखवा दी, लेकिन आज तक इस मशीन के संचालन के लिए विशेषज्ञ की तैनाती नहीं की गई है। नतीजा, एक्स-रे मशीन होने के बावजूद ग्रामीणों को एक्स-रे करवाने के लिए करीब सौ किमी. दूर कोटद्वार के बेस चिकित्सालय में आना पड़ता है। ग्राम पोखार निवासी किशोरी के हाथ में बंधे गत्ते को देख जब चिकित्सालय प्रशासन से इसका कारण पूछा गया तो चिकित्सक डा.तान्या ने पूरी स्थिति स्पष्ट कर दी। डा.तान्या ने बताया कि किशोरी के हाथ का एक्स-रे होने के बाद ही प्लास्टर किया जाना था, लेकिन एक्स-रे टैक्निशियन न होने के कारण एक्स-रे नहीं हो पाया। किशोरी के हाथ में पट्टी बांध उसे कोटद्वार के लिए रेफर कर दिया। सफर के दौरान हाथ हिलने से टूटी हड्डी हाथ को अधिक नुकसान पहुंचा सकती थी, इस कारण पट्टी के बाहर गत्ता बांध हाथ को सपोर्ट दिया गया।

मानसून सीजन में जलस्तर की होगी निगरानी
देहरादून। मानसून सीजन में नदियों की बाढ़ की वजह से होने वाले जानमाल के नुकसान को समय रहते नियंत्रित किया जा सकेगा। गंगा, यमुना, कोसी और काली समेत राज्य की प्रमुख नदियों के जल स्तर की निगरानी के लिए 59 स्थानों पर अत्याधुनिक ऑटोमेटिक वाटर लेवल रिकार्डर स्थापित किए जा रहे हैं।
इनकी मदद से अतिवृष्टि, ग्लेशियर पिघलने समेत विभिन्न वजहों से नदियों के जल स्तर में होने वाले बदलाव का अलर्ट मिल जाएगा।एचओडी-सिंचाई विभाग प्रमुख अभियंता मुकेश मोहन के अनुसार ये रिकार्डर नदियों के जल स्तर में होने वाले हर बदलाव पर बारीकी से नजर रखते हुए पल पल अपडेट देते रहेंगे। जल स्तर बढोत्तरी संकेत मिलने पर तत्काल ही प्रशासन और इससे प्रभावित हो सकने वाले क्षेत्रों को अलर्ट किया जा सकेगा।
बकौल मोहन, रिकार्डर को चरणबद्ध तरीके से स्थापित किया जाएगा। जून अंत तक राज्य में पंद्रह प्रमुख स्थानों पर रिकार्डर स्थापित कर दिए जाएंगे। जलस्तर पर नजर रखने के लिए बनाए जा रहे प्रोजेक्ट को रियल टाइम डाटा एक्वीजिशन सिस्टम (आरटीडीएएस) नाम दिया गया है। न केवल नदियों के पानी बल्कि बारिश और बर्फ की निगरानी के लिए भी सिस्टम तैयार किया जा रहा है।
नदियों में 59 ऑटोमेटिक वाटर लेवल रिकार्ड लगाए जाएंगे। इनके साथ ही बारिश को मापने के लिए 44 ऑटोमेटिक रेन गेज, 05 आटेमेटिक वेदर स्टेशन,05 स्नो गेज और 11 सामान्य रेन गेज लगाए जाएंगे। जलस्तर की जानकारी का उत्तराखंड और यूपी मिलकर लाभ उठा सकते हैं। जल स्तर में होने वाले बदलाव की जानकारी मिलने पर यूपी भी अपने क्षेत्र में समय रहते सुरक्षात्मक उपाय कर सकता है। उत्तराखंड में भूगर्भ जल भंडार की निगरानी के लिए भी नया सिस्टम तैयार किया जा रहा है। एचओडी-सिंचाई मुकेश मोहन के अनुसार एनएचपी के तहत राज्य के मैदानी जिलों में 66 जगह पर पीजोमीटर लगाए जाने हैं। इसमें अब तक 25 पीजोमीटर स्थापित कर दिए गए हैं। इनके साथ डिजीटल वाटर लेवल रिकार्डर भी लगाए जाएंगे। इनकी मदद से भूगर्भ जल के स्तर की स्थिति का सटीक आंकलन किया जा सकता है। इनकी रिपेार्ट के आधार पर भूगर्भ की कमी वाले क्षेत्रों में उपचार के प्रयास किए जा सकते हैं।

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