नयी दिल्ल। 26 अप्रैल भारत में 10 अप्रैल से लेकर अब तक महज 4.64 लाख लोगों ने कोविड-19 रोधी टीके की बूस्टर खुराक लगवाई है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय डर, भ्रम और गलत जानकारी के चलते एहतियाती खुराक लगवाने से बच रहे हैं।
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में वृद्धि के बीच ज्यादा लोग बूस्टर खुराक नहीं लगवा रहे हैं। वैज्ञानिकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और उद्योग के जानकारों का कहना है कि बूस्टर खुराक लगवाने में हिचक की मुख्य वजह प्रतिकूल प्रभाव का डर, कोविड-19 का मामूली संक्रमण होने की सोच व एहतियाती खुरक के असर को लेकर मन में संशय है।
विषाणु रोग विशेषज्ञ टी जैकब जॉन के मुताबिक, बूस्टर खुराक को लेकर हिचक इसलिए भी है, क्योंकि नए विशेषज्ञों के दावे भ्रमित करने वाले हैं।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मुझे बूस्टर खुराक पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए कई प्रश्न मिलते हैं। इसलिए मैं जानता हूं कि सरकार की ‘शैक्षिक गतिविधि’, जो अत्यधिक कमजोर लोगों का टीकाकरण पूरा कर कोविड-19 से होने वाली मौतों, अस्पताल में भर्ती होने की दर और गंभीर लक्षणों के उभरने का जोखिम घटाना चाहती है, वह जागरूक करने से ज्यादा भ्रमित करने वाली है।”
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी के पूर्व निदेशक ने कहा कि लंबे समय तक लोगों को बताया गया था कि पूर्ण टीकाकरण का मतलब दो खुराक है, ऐसे में एहतियाती खुराक शब्द ने भ्रम की स्थिति पैदा की है। कोवीशील्ड का निर्माण करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के सीईओ अदार पूनावाला ने बीते हफ्ते कहा था कि उनके स्टॉक में बड़ी संख्या में बिना बिके हुए टीके मौजूद हैं। पूनावाला के मुताबिक, “हमने 31 दिसंबर 2021 को उत्पादन बंद कर दिया था।
मौजूदा समय में हमारे पास 20 करोड़ से अधिक खुराक मौजूद हैं। मैंने इन्हें मुफ्त में देने की पेशकश की है, लेकिन उस प्रस्ताव पर भी ज्यादा अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है।” ‘टाइम्स नेटवर्क इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव’ में पूनावाला ने कहा, “ऐसा लगता है कि लोगों में टीके को लेकर हिचक है। कीमतों के 225 रुपये प्रति खुराक तक घटने के बावजूद इनकी ज्यादा खरीद नहीं हो रही है।” इकरिस फार्मा नेटवर्क के सीईओ प्रवीण सीकरी की नजर में लोग एहतियाती खुराक की जरूरत पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि कोविड-19 संक्रमण की पिछली लहर ज्यादा घातक नहीं थी।