बेंगलुरु। शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाले छात्र-याचिकाकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय को बताया कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम-1983 में वर्दी के उल्लंघन के लिए दंड का कोई प्रावधान नहीं है। कुंडापुरा की छात्राओं की ओर से कर्नाटक उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के समक्ष पेश हुए अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम-1983 में निर्धारित दंड खंड काफी हद तक कॉलेज प्रबंधन तक ही सीमित है। उन्होंने कहा कि अधिनियम में नकल करने, कदाचार और लूटपाट के लिए जुर्माना लगाने का प्रावधान है।
मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जे एम खाजी की संपूर्ण पीठ के समक्ष हेगड़े ने कहा, ‘‘हालांकि, वर्दी के उल्लंघन के लिए अधिनियम में जुर्माने अथवा दंड का कोई प्रावधान नहीं है।’’ पीठ का गठन बुधवार रात को हिजाब मामले की सुनवाई के लिए किया गया था, जब न्यायमूर्ति दीक्षित की एकल पीठ ने इसे मुख्य न्यायाधीश को यह कहते हुए संदर्भित किया था कि एक बड़ी पीठ इस पर सुनवाई कर सकती है।
हेगड़े के अनुसार, याचिकाकर्ता छात्राएं लंबे समय से अपनी वर्दी के साथ-साथ अपने सिर पर नियमित स्कार्फ (हिजाब) भी पहनती आई हैं, लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने जोर देकर कहा है कि उन्हें कक्षाओं में आने के लिए इसे हटा देना चाहिए। हेगड़े ने तर्क दिया कि दिसंबर के बाद से याचिकाकर्ताओं को भेदभाव का सामना करना पड़ा है और उन्हें कक्षा से बाहर खड़ा कर दिया गया था। छात्राओं ने कहा कि हिजाब उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान है। इसके जवाब में राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने बताया कि जब लड़कियां हिजाब पहनकर कॉलेजों में आने लगीं, तो कुछ अन्य छात्र भगवा शॉल पहनकर आने लगे, जिससे अराजकता फैल गई। नतीजतन, राज्य ने शुक्रवार तक स्कूलों और कॉलेजों में तीन दिनों के लिए अवकाश घोषित कर दिया। महाधिवक्ता नवदगी ने यह भी कहा कि शिक्षण संस्थानों ने राज्य सरकार के निर्देश के आधार पर स्कूल की वर्दी तय की है।