फरीदाबाद। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने फरीदाबाद में आयोजित 35वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला का उद्घाटन करते हुए कहा कि देश की हस्तशिल्प, हथकरघा परंपरा को प्रदर्शित करने वाले इस मेले में उपस्थित होना गर्व की बात है। उन्होंने आजादी के अवसर पर इस मेले के आयोजन के लिए हरियाणा और केंद्र सरकार को बधाई व शुभकामनाएं दी।
उन्होंने देश-विदेश से यहां पहुंचे शिल्पकार, बुनकरों और पयर्टकों का हरियाणा की पावन धरा पर स्वागत करते हुए कहा कि यह मेला 1987 से हर साल आयोजित किया जाता है। इस साल इस मेले में हजारों की संख्या में बुनकर भाग ले रहें हैं, जिन्हें अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने का अवसर मिलेगा। 15 दिन चलने वाले इस मेले में लाखों की संख्या में पर्यटन पहंचेगे और इसके माध्यम से अन्य देशों के साथ संबंध और प्रगाढ़ होंगे।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मेले के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा कि मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास में हस्तशिल्प और हथकरघा का महत्वपूर्ण योगदान है। शिल्प व हथकरघा मेले शिल्पकारों को अपनी पसंद व कला के आदान-प्रदान का अवसर प्रदान करते हैं। इस उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला पिछले 35 सालों से ऐसे ही शिल्पकार, हथकरघा कारीगरों को एक उचित मंच प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि हर वर्ष इस मेले का आयोजन एक श् थीम स्टेट श् और एक सहभागी देश के साथ किया जाता है। इस वर्ष मेले का श्थीम स्टेटश् केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर और सहभागी देश उज्बेकिस्तान है।
उन्होंने कहा कि आजादी का यह अमृतकाल एक ओर जहां मां भारती के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले हमारे अमर शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों की मधुर स्मृतियों को ताजा कर रहा है तो वहीं बसंत ऋतु की यह वासंती पवन हर देशवासी के मन में देशभक्ति के भाव और जोश का संचार कर रही है । कल ही हमने रंगों का त्योहार होली बड़ी धूमधाम से मनाया। आज 35 वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेले का शुभारंभ हो रहा है। ऐसे मणिकांचन योग में, देश – विदेश के कलाकारों व शिल्पकारों की कल्पनाओं से सराबोर कलाकृतियों से सुसज्जित इस हस्तशिल्प मेले की छटा देखते ही बनती है ।
उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास में हस्तशिल्प और हथकरघा का महत्वपूर्ण योगदान है। विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास हस्तशिल्प और हथकरघा के इतिहास को भी दर्शाता है। इन कलाओं को आधुनिक युग में भी उतना ही पसंद किया जाता है , जितना प्राचीन काल में किया जाता था । अतः शिल्प , हथकरघा व ऐसे ही मेले शिल्पकारों को अपनी पसंद व कला के आदान – प्रदान का अवसर प्रदान करते हैं ।