नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय में अवैध नियुक्तियों के आरोपों संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता व विधानसभा सचिवालय को निर्देश दिए हैं कि वर्ष 2000 से 2021 तक किसके कार्यकाल में विधानसभा सचिवालय में कितनी नियुक्तियां हुईं, उनकी पहचान कर वर्षवार रिपोर्ट तैयार करके तीन सप्ताह में शपथपत्र पेश करें। मामले की अगली सुनवाई 4 अगस्त को होगी।
मामले के अनुसार, उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में बैकडोर भर्ती, भ्रष्टाचार व अनियमितताओ के खिलाफ देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि विधानसभा ने एक जांच समिति बनाकर वर्ष 2016 के बाद की विधानसभा सचिवालय में हुई भर्तियों को निरस्त कर दिया जबकि उससे पहले की नियुक्तियों को नहीं किया। याचिका में आरोप लगाया गया कि सचिवालय में यह घोटाला वर्ष 2000 में राज्य बनने से अब तक होता रहा है, जिस पर सरकार ने अनदेखी कर रखी है।
जनहित याचिका में कोर्ट से प्रार्थना की गई कि विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगवाने वाले लोगों के खिलाफ उच्च न्यायालय के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराई जाए, उनसे सरकारी धन की वसूली कर उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को अवगत कराया गया कि सरकार ने 6 फरवरी 2003 का शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान के उस अनुच्छेद का उल्लंघन, जिसमें हर नागरिक को सरकारी नौकरियों में समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती होने का प्रावधान है और उत्तर प्रदेश विधानसभा की वर्ष 1974 की सेवा नियमावली तथा उत्तराखंड विधानसभा की वर्ष 2011 की नियमावलियों का उल्लंघन किया गया है।