देहरादून। संजय ऑथ्र्राेपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेन्टर जाखन देहरादून की 100 अचीवर्स वीमेनन्स ऑफ इंडिया से सम्मानित डॉ0 सुजाता संजय स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ ने किशोरियों एवं महिलाओं को यौवनारंभ के शुरूआती लक्षण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी जिससे की युवतियॉ अपने यौवनारंभ के शारीरिक बदलावों के बारे मे जान सके। इस जन-जागरूकता व्याख्यान में उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व पंजाब से लगभग 55 से भी ज्यादा किशोरियों ने भाग लिया।
डॉ0 सुजाता संजय ने किशोरियों एवं महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि, बाल्यावस्था की मासूमियत और भोलेपन की दहलीज पार करके जब किशोरियां यौवनावस्था में प्रवेश करती है, यही वयःसंधि कहलाती है। इस दौर में परिवर्तनों का तूफान आता है। शरीर में आकिस्मक आए परिवर्तन न केवल शारीरिक वृद्वि व नारीत्व की नींव रखते हैं, वरन् मानसिक परिवर्तनों के साथ मन में अपनी पहचान व स्वतंत्रता को लेकर एक अंतद्वद्र्व भी छेड देते है। इन परिवर्तनों से अनभिज्ञ कई लड़कियां यह सोचकर परेशान हो उठती हैं कि वे किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त तो नहीं। प्यूबर्टी अपने में अजीब समय होता है। और जब ये कम उम्र में होने लगता है तो ये और भी अजीब हो जाता है। आपको अपने 5-6 साल के बच्चे को उसके शरीर में हो रहे इन बदलावों के बारे में समझाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय में शरीर तो इन बदलावों को झेलने के लायक हो जाती है पर दिमाग नहीं। इस मुद्दे को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ हैंडल करना चाहिए।
डॉ0 सुजाता संजय ने बताया कि यौवन जिन्दगी का वो भाग है जहॉ एक यौन रूप से अपरिपक्व बच्चा एक संभावित प्रजनन के लायक किशोर और उसके बाद, एक वयस्क के रूप में विकसित हो जाता है। युवावस्था में नसों और हार्माेन से जुड़े एक तंत्र का पूर्ण रूप से विकास शुरू हो जाता है। असामयिक प्यूबर्टी को बताते हुए डॉ0 सुजाता संजय ने कहा कि, साधारण प्यूबर्टी की उम्र लड़कियों में 8 से 13 साल और लड़को में 9 से 14 साल होती है। असामयिक प्यूबर्टी तब माना जाता है जब यह लड़कियों में 8 वर्ष की उम्र से पहले हो जाए और लड़कों में 9 वर्ष की उम्र से पहले। प्यूबर्टी के दौरान पुनरूतपादन अंग काम करना शुरू कर देता है। डॉ0 सुजाता संजय ने लड़कियों में प्यूबर्टी के लक्षणों के बारे में बताते हुए कहा कि इस अवस्था में लड़कियों के स्तन का विकास, शरीर के गुप्त अंगों में बालों का निकलना एवं मासिक धर्म भी शुरू होना, जब बच्चा हर साल 7 से 8 सेंटीमीटर बड़ी होने लगे एवं चेहरे और पीठ पर मुहॉसे आना। से सब प्यूबर्टी के मुख्य लक्षणों में से एक है। इन सबके अलावा व्यवहारिक और इमोशनल बदलाव भी आते हैं जिनका ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। ऐसे समस्या में बहुत जरूरी है कि आप उससे बातचीत करें और भावनात्मक रूप से साथ दें। डॉ0 सुजाता संजय ने अपने विचारों में यह भी कहा कि हमारे बच्चों को कोई चीज प्रभावित कर रही है, फिर चाहे वह जंक फूड हो, पर्यावरण में घुले रसायन हों या शारीरिक श्रम की कमी हो। यह सामान्य है कि आपको शरीर में आ रहे बदलाव अजीब लगें और आप इन्हें लेकर संवेदनशील हो जाए। आप क्रोधित हो सकती है, आपा खो सकती है या फिर उदास महसूस कर सकती है।