नई दिल्ली। बदले की राजनीति, ऑपरेशन लोट्स और राज्य की सरकार को गिराने के आरोप विरोधियों द्वारा मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी पर परस्पर लगाए जाते रहे हैं। लेकिन अगर हकीकत के आइने में इसे परखने की कोशिश करेंगे तो सच्चाई कुछ और ही नजर आएगी। पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग ने उपचुनाव की घोषणा कर दी है। उपचुनाव आगामी 30 सितंबर को होगा व उसके परिणाम 3 अक्टूबर को घोषित किया जाएगा। इस घोषणा के साथ ही केंद्र सरकार को पानी पीकर कोसने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पद पर बने रहने के संवैधानिक संकट से राहत मिल गई। केंद्र और पीएम मोदी पर हमलावर रहने वाली ममता दीदी की तरफ से चुनाव आयोग पूरी तरह से बीजेपी के इशारों पर काम करने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। लेकिन अब इस निर्णय के बाद केंद्र सरकार पर निशाना साधने का मौका गंवा दिया है।
निर्वाचन आयोग ने 4 सितंबर को उपचुनाव की तारीख की घोषणा की। जिसमें पश्चिम बंगाल की तीन विधानसभा सीटों और ओडिशा की एक विधानसभा सीट पर भी 30 सितंबर को मतदान होगा, जहां संबंधित राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान स्थगित हो गया था। बंगाल की भवानीपुर विधानसभा सीट पर 30 सितंबर को उपचुनाव होगा जहां से राज्य की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी की चुनाव लड़ने की योजना है। बनर्जी इस साल की शुरुआत में हुए राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी पारंपरिक भवानीपुर सीट को छोड़कर चुनाव लड़ने के लिए नंदीग्राम चली गई थीं, लेकिन वह शुभेंदु अधिकारी से हार गईं जिन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। अधिकारी अब पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। चुनाव परिणामों के बाद बनर्जी चुनाव लड़ सकें इसके लिए भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र के तृणमूल विधायक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने यह सीट खाली कर दी।
उपचुनाव की घोषणा के साथ ही ममता बनर्जी के ऊपर से संकट के बादल फौरी तौर पर कम हुए हैं लेकिन पूरी तरह नहीं टले हैं। ममता के लिए ये उपचुनाव करो या मरो वाली स्थिति बन गया है। अगर ममता चुनाव हारती हैं तो फिर राज्य के सीएम पद पर से हटना उनकी मजबूरी हो जाएगा। वैसे तो ये माना जाता है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए कोई चुनाव नहीं हारता है, लेकिन ये कोई गारंटी वाली बात नहीं है। ऐसे में अगर ममता दीदी को उपचुनाव में हार मिलती है तो बहुमत की सरकार बनने के बावजूद भी उन्हें सीएम पद त्यागना पड़ जाएगा।
28 मई 2020 को उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने छह महीने पूरे होने वाले थे, लेकिन फिर भी वो महाराष्ट्र के दोनों सदनों में से किसी के सदस्य नहीं बन पाये थे। जिसके बाद से उद्धव ठाकरे के कुर्सी पर बने रहने को लेकर असमंजस का दौर भी शुरू हो रहा था। कुर्सी पर मंडराते खतरे को देखते हुए शिवसेना ने अपनी पुरानी अकड़ को दरकिनार करते हुए अक्सर देश की जनता से अपने मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कुर्सी खोने के जज्जबात को सामने रखा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 28 अप्रैल की रात में फोन किया। उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को महाराष्ट्र की संवैधानिक स्थिति को लेकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया। जिसके बाद पीएम मोदी की तरफ से मामले को देखने का आश्वासन दिया गया। जिसके बाद विधान परिषद की सदस्यता पाकर उद्धव ठाकरे ने अपनी कुर्सी बचा ली।