समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के अलावा चाचा शिवपाल भी रथ पर सवार होकर सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा कर रहे हैं। चाचा शिवपाल ने कुछ वक्त पहले कहा था कि समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करना उनकी पहली प्राथमिकता है। लेकिन वह अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के साथ गठबंधन करने की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है। इसी बीच समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ‘विजय रथ‘ पर सवार होकर वोर्टर को लुभाने के लिए निकल पड़े हैं। आगामी चुनाव को लेकर छोटे-छोटे दलों के साथ अखिलेश की बातचीत भी चल रही है। इतना ही नहीं वो चाचा शिवपाल को भी अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं।
चाचा भी कर रहे हैं रथ यात्रा
अखिलेश के अलावा चाचा शिवपाल भी रथ पर सवार होकर सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा कर रहे हैं। चाचा शिवपाल ने कुछ वक्त पहले कहा था कि समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करना उनकी पहली प्राथमिकता है। लेकिन वह अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के साथ गठबंधन करने की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं। शिवपाल की रथ यात्रा मथुरा के वृंदावन से शुरू हुई और 75 जिलों से होते हुए भगवान राम के जन्म स्थान अयोध्या में संपन्न होगी।
वहीं राजनीतिक गलियारों में अखिलेश यादव के रथयात्रा की चर्चा जोरो शोरो पर है क्योंकि उनका रथ अभी तक का सबसे ज्यादा अत्याधुनिक और महंगा रथ है। इस रथ में 12 लोग बैठ सकते हैं। इसके अलावा इसमें अखिलेश का कार्यालय भी है, जहां पर वो 6 लोगों के साथ बैठक कर सकते हैं। जैसी सुविधाओं की नेताओं को आवश्यकता होती है वह तमाम सुविधाएं रथ में मौजूद है। इसमें इंटरनेट से लेकर लिफ्ट तक की सुविधा है।
कितने में तैयार हुआ रथ ?
अखिलेश यादव के रथ की लागत तकरीबन 5 करोड़ रुपए आंकी गई है। हालांकि यह कोई पहली दफा नहीं है जब राजनीति में रथ का इस्तेमाल हो रहा है। रथ नाम का जिक्र होते ही सबसे पहले भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी के रथ की याद आती है। उन्होंने 25 सिंतबर, 1990 को सोमनाथ से रथ यात्रा की शुरुआत की थी जिसे अयोध्या पहुंचना था लेकिन उन्हें रास्ते में ही बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि रथ यात्रा की शुुरुआत इससे भी पहले हुई थी। इसके लिए आपको साउथ की राजनीति की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा।
साउथ की फिल्मों के सुपरस्टार रहे एनटी रामाराव ने राजनीति में अपनी पकड़ को स्थापित करने के लिए रथ यात्रा की शुरुआत की थी। रामाराव ने 1982 में चैतन्य रथ के माध्यम से आंध्र प्रदेश के हर एक गांव का दौरा किया था और उन्होंने करीब 75 हजार किमी का सफर तय किया था। जिसक असर आगामी चुनाव में दिखाई दिया और रामराव के सामने कांग्रेस टिक नहीं पाई और 6 जनवरी, 1983 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
खैर वापस उत्तर प्रदेश लौट आते थे और अखिलेश के रथ की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने वाली समाजवादी पार्टी सरकार के खिलाफ प्रमुखता से अपने मुद्दों को उठाती रही है।