देहरादून: वर्ष 2016 में हुए स्टिंग आपरेशन प्रकरण में शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व विधायक मदन बिष्ट के अधिवक्ता विवेक गुप्ता, नीलमा रत्न कुकरेती, ओपी सती और मनमोहन कंडवाल पेश हुए। अधिवक्ताओं ने कोर्ट में दलील दी कि शासन जब केस को वापस ले चुका है तो अब इस पर कार्रवाई क्यों की जा रही है।
अधिवक्ता मनमोहन कंडवाल ने बताया कि उनकी ओर से दलील दी गई है कि वाइस सैंपल को लेकर उच्च न्यायालय में सुनवाई होनी है। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही सैंपल पर फैसला लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सीबीआइ की ओर से वाइस सैंपल लेने के लिए कोई फोन तक नहीं किया गया, केवल नोटिस थमा दिए गए। मामला 2016 का है और सीबीआइ की ओर से वाइस सैंपल लेने के लिए अचानक नोटिस जारी किए गए हैं।
बताया जा रहा है कि वर्ष 2016 में कांग्रेस की तत्कालीन सरकार में बगावत के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत का एक स्टिंग सामने आया था। इसमें मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी सरकार को बचाने के लिए विधायकों का मोल भाव करते दिखाए गए थे। एक अन्य स्टिंग में कांग्रेस के तत्कालीन विधायक मदन सिंह बिष्ट के होने का दावा किया गया।इस स्टिंग में पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के भी शामिल होने की बात कही गई। दावा किया गया कि इन दोनों के स्टिंगकर्ता उमेश कुमार हैं। प्रकरण की जांच सीबीआइ को सौंपी गई। स्टिंग में जो आवाजें हैं उनके मिलान के लिए वायस सैंपल लेने की अनुमति सीबीआइ ने अदालत से मांगी थी।