दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता संयुक्त राष्ट्र संधि के अनुरूप होनी चाहिएः जयशंकर

Prashan Paheli

नयी दिल्ली। भारत ने बुधवार को इस बात पर जोर दिया कि दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता पूरी तरह से प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र संधि के अनुरूप होनी चाहिए और इस पर बातचीत से उन देशों के वैध अधिकारों और हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए जो चर्चा में शामिल नहीं हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस)की एक बैठक को डिजिटल तरीके से संबोधित करते हुए समूह के विभिन्न सदस्यों के बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर दृष्टिकोण के बढ़ते अभिसरण पर भी प्रकाश डाला।
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अलग से, जयशंकर ने आसियान-भारत विदेश मंत्रियों की एक बैठक को भी संबोधित किया और इस दौरान उन्होंने सम्पर्क सहित कई मुद्दों को रेखांकित किया तथा कहा कि भारत ‘‘माल समझौते में व्यापार’’ की शीघ्र समीक्षा की प्रतीक्षा कर रहा है। जयशंकर ने ईएएस सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों के साथ अपनी बैठक के बारे में ट्वीट किया, इस बात पर जोर दिया कि दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता पूरी तरह से यूएनसीएलओएस 1982 के अनुरूप होनी चाहिए। देशों के वैध अधिकारों और हितों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।’’
चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है, जो हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्रोत है। हालांकि, वियतनाम, फिलीपीन और ब्रुनेई सहित कई आसियान सदस्य देश भी इस पर दावा करते हैं। ईएएस बैठक में अपने संबोधन में, जयशंकर ने म्यांमार पर आसियान पांच सूत्री आम सहमति का भी समर्थन किया और एक विशेष दूत की नियुक्ति का स्वागत किया। विदेश मंत्री ने बुधवार को ब्रिटेन के अपने समकक्ष डोमिनिक राब से भी बात की और द्विपक्षीय संबंधों का जायजा लिया। जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘‘ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमिनिक राब के साथ हमारे संबंधों का व्यापक जायजा लिया। रोडमैप 2030 के विभिन्न स्तंभों की समीक्षा की।
प्रगति पर गौर किया तथा इसे और आगे ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’ रोडमैप 2030 को मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के बीच एक डिजिटल शिखर सम्मेलन में अपनाया गया था। रोडमैप का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाना और अगले दशक में व्यापार और अर्थव्यवस्था, रक्षा एवं सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग करना है।

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